रविवार, 21 सितंबर 2025

रॉलेट एक्ट 1919 – सम्पूर्ण जानकारी (Rowlatt Act in Hindi) for COMPETITIVE EXAMS UPSC, SSC, UPPSC, RRB etc.

रॉलेट एक्ट 1919 – सम्पूर्ण जानकारी (Rowlatt Act in Hindi)

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भूमिका

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई ऐसे कानून बने, जिन्होंने जनता के भीतर रोष और असंतोष को जन्म दिया। रॉलेट एक्ट 1919 इन्हीं में से एक था, जिसे भारतीय जनता ने "काला कानून" का नाम दिया। ब्रिटिश सरकार ने इस कानून को प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद लागू किया था। युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत से सैनिकों, संसाधनों और धन की भारी मांग की थी, लेकिन बदले में जनता को सिर्फ कठोरता और अन्याय मिला। यह कानून विशेष रूप से उन लोगों के खिलाफ था, जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे या क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे।

रॉलेट एक्ट का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता को डराना और स्वतंत्रता आंदोलन की गति को रोकना था। लेकिन इस कानून ने उल्टा असर किया और देशभर में विरोध की लहर दौड़ गई। यही विरोध आगे चलकर जालियाँवाला बाग हत्याकांड जैसी भयावह घटना का कारण बना।

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रॉलेट एक्ट की पृष्ठभूमि

1914 से 1918 तक चला प्रथम विश्व युद्ध ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक कठिन समय था। युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने भारत से लगभग 13 लाख सैनिक भेजे और भारी मात्रा में आर्थिक सहयोग लिया। युद्ध खत्म होते-होते भारत में आर्थिक संकट, महंगाई, बेरोजगारी और असंतोष तेजी से बढ़ने लगा। कई हिस्सों में क्रांतिकारी आंदोलन तेज हो गए थे। पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में गुप्त संगठन सक्रिय थे।

ब्रिटिश सरकार को डर था कि अगर इन गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो शासन बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए 1918 में एक विशेष समिति बनाई गई, जिसे रॉलेट समिति कहा गया। इस समिति के अध्यक्ष ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट थे। इस समिति ने सरकार को सलाह दी कि ऐसे कठोर कानून बनाए जाएँ, जिससे बिना मुकदमे के भी लोगों को गिरफ्तार किया जा सके और उन्हें लंबे समय तक जेल में रखा जा सके।


रॉलेट एक्ट के मुख्य प्रावधान

रॉलेट एक्ट को आधिकारिक तौर पर "Anarchical and Revolutionary Crimes Act of 1919" कहा गया। इसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार थे –

  • किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार किया जा सकता था।

  • गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को बिना मुकदमे लंबे समय तक जेल में रखा जा सकता था।

  • प्रेस की स्वतंत्रता पर कठोर पाबंदियाँ लगा दी गईं।

  • मामलों की सुनवाई विशेष अदालतों में होती थी, जहाँ जूरी नहीं होती थी।

  • आरोपी को वकील रखने और अपील करने के अधिकार सीमित कर दिए गए थे।

इन प्रावधानों से साफ था कि यह कानून पूरी तरह से जनता की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए बनाया गया था।

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भारतीय जनता की प्रतिक्रिया

रॉलेट एक्ट के खिलाफ देशभर में नाराज़गी फैल गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस कानून का जमकर विरोध किया। महात्मा गांधी ने इसे "काला कानून" कहते हुए सत्याग्रह आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया।

6 अप्रैल 1919 को गांधी जी ने देशव्यापी हड़ताल और प्रदर्शन का आह्वान किया। जगह-जगह लोगों ने शांतिपूर्ण जुलूस निकाले, दुकानें बंद रखीं और ब्रिटिश शासन के खिलाफ नारे लगाए। लेकिन कई जगह पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और गोलियाँ चलाईं।


पंजाब में विरोध और दमन

पंजाब में रॉलेट एक्ट का विरोध सबसे अधिक हुआ। अमृतसर, लाहौर और कसूर में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। ब्रिटिश सरकार ने इसे दबाने के लिए दमनकारी कदम उठाए। कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और सार्वजनिक सभाओं पर पाबंदी लगा दी गई।

अमृतसर में 10 अप्रैल 1919 को दो प्रमुख नेताओं – डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल – को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे लोगों का गुस्सा और भड़क गया।

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जालियाँवाला बाग हत्याकांड से संबंध

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जालियाँवाला बाग में हजारों लोग एकत्र हुए। वे शांतिपूर्वक रॉलेट एक्ट और गिरफ्तार नेताओं के विरोध में सभा कर रहे थे। इसी दौरान ब्रिटिश अधिकारी जनरल रेजिनाल्ड डायर अपने सशस्त्र सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा।

बिना किसी चेतावनी के डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। सैनिकों ने लगभग 10 मिनट तक गोलियाँ चलाईं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 लोग मारे गए, लेकिन असली संख्या 1000 से भी अधिक बताई जाती है। सैकड़ों लोग घायल हुए।

यह घटना पूरे देश के लिए गहरे सदमे का कारण बनी। गांधी जी ने इसे ब्रिटिश शासन की क्रूरता का सबसे बड़ा उदाहरण बताया।


रॉलेट एक्ट की आलोचना

रॉलेट एक्ट की आलोचना सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन में भी हुई। कई ब्रिटिश सांसदों और बुद्धिजीवियों ने इसे लोकतंत्र और न्याय के खिलाफ बताया। भारतीय नेताओं ने इसे पूरी तरह से अत्याचारी कानून कहा।

गांधी जी ने कहा – "यह कानून हमारे आत्मसम्मान और स्वतंत्रता के लिए खतरा है।"
लोकमान्य तिलक ने इसे "अंग्रेजी न्याय व्यवस्था पर कलंक" बताया।

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रॉलेट एक्ट का अंत और प्रभाव

जनता के दबाव, अंतरराष्ट्रीय आलोचना और बढ़ते विरोध के कारण यह कानून कुछ वर्षों के भीतर रद्द कर दिया गया। लेकिन इसका असर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर गहरा पड़ा।

  • इस कानून ने जनता को एकजुट किया।

  • अंग्रेजों के प्रति अविश्वास और गहरा हुआ।

  • स्वतंत्रता की माँग और तेज़ हो गई।

  • गांधी जी को राष्ट्रीय नेता के रूप में व्यापक पहचान मिली।


रॉलेट एक्ट भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसने यह दिखा दिया कि अंग्रेज भारत में जनता की आज़ादी को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन इस कानून ने भारतीयों को और अधिक संगठित कर दिया। यह आंदोलन और इसके विरोध ने आगे चलकर स्वतंत्रता की लड़ाई को नई गति दी और 1947 में भारत की आज़ादी का मार्ग प्रशस्त किया।


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