परिचय
भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों में मौर्य साम्राज्य (Mauryan Empire) का नाम बहुत ही गौरवपूर्ण ढंग से लिया जाता है। यह साम्राज्य न केवल भारत का पहला सबसे बड़ा और संगठित साम्राज्य था, बल्कि इसने राजनीतिक एकता, प्रशासनिक दक्षता और सांस्कृतिक वैभव की नई नींव भी रखी।
मौर्य साम्राज्य की शुरुआत 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। उनके गुरु और महान राजनयिक चाणक्य (कौटिल्य) ने इस साम्राज्य की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। मौर्य काल में पहली बार पूरा उत्तरी भारत एक छत्र के नीचे संगठित हुआ।
Table of Contents
मौर्य साम्राज्य की स्थापना
1. मौर्य साम्राज्य से पहले भारत की स्थिति
मौर्य साम्राज्य की स्थापना से पहले भारत में कई छोटे-छोटे महाजनपद और राज्यों का अस्तित्व था। मगध उस समय सबसे शक्तिशाली जनपद था, जहाँ नंद वंश शासन कर रहा था।
नंद वंश की सेना बहुत बड़ी थी, लेकिन प्रजा उस वंश से खुश नहीं थी।
इस समय पश्चिमोत्तर भारत पर सिकंदर (Alexander) का आक्रमण भी हो चुका था।
भारतीय उपमहाद्वीप को एक सशक्त और संगठित नेतृत्व की आवश्यकता थी।
2. चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य की भूमिका
चंद्रगुप्त मौर्य एक प्रतिभाशाली और साहसी युवक थे।
उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) ने उन्हें राजनीतिक ज्ञान दिया और मगध से नंद वंश को हटाने की योजना बनाई।
चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें शासन, राजनीति, अर्थव्यवस्था और युद्ध की विस्तृत जानकारी दी गई है।
👉 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
3. राजधानी पाटलिपुत्र का महत्व
मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) थी।
यह गंगा नदी के किनारे बसा हुआ नगर था और व्यापार, राजनीति व संस्कृति का केंद्र था।
ग्रीक लेखक मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में पाटलिपुत्र का विस्तृत वर्णन किया है।
चंद्रगुप्त मौर्य (321 ई.पू. – 297 ई.पू.)
चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक और पहले शासक थे।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
नंद वंश का अंत:
चाणक्य की मदद से नंद शासक धनानंद को पराजित किया।
सेल्यूकस निकेटर से युद्ध:
सिकंदर की मृत्यु के बाद उसका सेनापति सेल्यूकस निकेटर पश्चिमोत्तर भारत का शासक बना।
चंद्रगुप्त मौर्य ने उससे युद्ध किया और अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
संधि के तहत सेल्यूकस ने अपनी बेटी की शादी चंद्रगुप्त से कर दी और उसे 500 हाथी उपहार में दिए।
प्रशासनिक सुधार:
केंद्रीकृत प्रशासन स्थापित किया।
कर व्यवस्था और भूमि सुधार लागू किए।
जैन धर्म की ओर झुकाव:
अपने जीवन के अंतिम समय में उन्होंने जैन धर्म अपना लिया और दक्षिण भारत (कर्नाटक के श्रवणबेलगोला) में संन्यासी जीवन बिताया।
👉 चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत को राजनीतिक रूप से एकजुट किया और एक मजबूत प्रशासनिक नींव रखी।
भारत की जलवायु पर संपूर्ण जानकारी
बिंदुसार (297 ई.पू. – 273 ई.पू.)
चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उनके पुत्र बिंदुसार गद्दी पर बैठे। उन्हें ग्रीक लेखक "एमित्रोचेट्स" (Amitrochates) के नाम से भी जानते हैं।
बिंदुसार की उपलब्धियाँ
साम्राज्य का विस्तार:
बिंदुसार ने अपने पिता के साम्राज्य को और मज़बूत किया।
उन्होंने दक्कन तक अपने शासन का विस्तार किया।
उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक मौर्य साम्राज्य की छाया फैल गई।
विदेशी संबंध:
यूनानी शासक एंटिओकस प्रथम, टॉलेमी और अन्य शासकों ने बिंदुसार से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए।
यूनानी यात्री डेइमेकस और डायमेकस उनके दरबार में आए।
धर्म और संस्कृति:
बिंदुसार की धार्मिक प्रवृत्ति वैदिक धर्म और आजीवक संप्रदाय की ओर झुकी हुई थी।
उन्होंने समाज में स्थिरता बनाए रखी।
👉 बिंदुसार ने लगभग 25 वर्षों तक शासन किया और अपने पुत्र अशोक को साम्राज्य सौंपा।
अशोक महान (273 ई.पू. – 232 ई.पू.)
बिंदुसार के बाद उनके पुत्र अशोक सिंहासन पर बैठे। उन्हें इतिहास में "अशोक महान" कहा जाता है। उनका शासनकाल मौर्य साम्राज्य का स्वर्णिम काल माना जाता है।
अशोक के शासन की प्रारंभिक स्थिति
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शुरुआत में अशोक एक पराक्रमी और कठोर शासक थे।
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उन्होंने अपने शासन के शुरुआती वर्षों में कई विद्रोह दबाए और साम्राज्य को मज़बूत किया।
कलिंग युद्ध (261 ई.पू.)
अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ कलिंग युद्ध था।
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कलिंग (आधुनिक ओडिशा) एक स्वतंत्र और समृद्ध राज्य था।
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अशोक ने इसे अपने साम्राज्य में शामिल करने के लिए युद्ध किया।
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इस युद्ध में लगभग 1,00,000 लोग मारे गए और 1,50,000 लोग बंदी बनाए गए।
👉 युद्ध के बाद अशोक को अपार पीड़ा और पश्चाताप हुआ।
पंचायती राज प्रणाली क्या है?
अशोक का धर्म परिवर्तन
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कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने हिंसा का मार्ग छोड़ दिया।
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उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और धम्म (Dhamma) नीति का प्रचार शुरू किया।
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वे करुणा, दया, अहिंसा और धर्मपालन के समर्थक बन गए।
अशोक की धम्म नीति
अशोक की धम्म नीति मौर्य साम्राज्य का सबसे विशेष पहलू है।
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अहिंसा का प्रचार: युद्ध और हिंसा का विरोध।
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सभी धर्मों का सम्मान: बौद्ध, जैन, हिन्दू सभी मतों के लिए समान दृष्टिकोण।
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जनकल्याणकारी कार्य:
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सड़कें, कुएँ, धर्मशालाएँ बनवाना।
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पशुओं और मनुष्यों के लिए अस्पताल।
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पेड़-पौधों का संरक्षण।
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धम्म महामात्र की नियुक्ति: प्रजा में नैतिक शिक्षा का प्रचार।
अशोक के शिलालेख और अभिलेख
अशोक ने अपनी धम्म नीति और आदेशों को शिलालेखों और स्तंभों पर खुदवाया।
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ये शिलालेख पूरे भारत में पाए जाते हैं।
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इनमें प्रजा के लिए नैतिक संदेश, दया, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता की बातें लिखी गईं।
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अशोक का सबसे प्रसिद्ध स्तंभ है सारनाथ का सिंह स्तंभ (जो आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है)।
बौद्ध धर्म का प्रसार
अशोक ने बौद्ध धर्म को न केवल भारत में बल्कि विदेशों तक फैलाया।
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उन्होंने श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और अन्य देशों में बौद्ध धर्म के प्रचारक भेजे।
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उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संगमित्रा ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
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बौद्ध धर्म का यह वैश्विक प्रसार अशोक की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
अशोक की महानता
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उन्होंने भारत में शांति, अहिंसा और धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल पेश की।
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भारतीय इतिहास में वे पहले शासक थे जिन्होंने "धर्म के बल" पर शासन किया।
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उन्हें सही मायनों में "देवनामप्रिय अशोक" और "धम्माशोक" कहा गया।
मौर्य साम्राज्य का प्रशासन
मौर्य साम्राज्य का प्रशासन उस समय का सबसे संगठित और केंद्रीकृत प्रशासन माना जाता है। इसका वर्णन हमें मेगस्थनीज की पुस्तक "इंडिका" और कौटिल्य के अर्थशास्त्र से मिलता है।
1. राजा
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मौर्य साम्राज्य में राजा को सर्वोच्च माना जाता था।
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राजा का दायित्व केवल शासन करना ही नहीं था, बल्कि वह प्रजा का रक्षक और धर्मपालक भी था।
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राजा सेना, न्याय, कर और कानून सब पर नियंत्रण रखता था।
2. मंत्रिपरिषद
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राजा को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद होती थी।
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इसमें अर्थ, विदेश नीति, सुरक्षा और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे।
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चाणक्य जैसे विद्वान मंत्री ही साम्राज्य की मज़बूती का आधार बने।
3. प्रशासनिक विभाजन
मौर्य साम्राज्य बहुत बड़ा था, इसलिए इसे कई हिस्सों में बाँटा गया:
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राजधानी क्षेत्र: पाटलिपुत्र राजा और केंद्र के सीधे नियंत्रण में।
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प्रांत: चार बड़े प्रांत – तक्षशिला, उज्जैन, सुवर्णगिरि और पाटलिपुत्र।
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जनपद और गाँव: गाँव को सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई माना गया।
4. नगर प्रशासन
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नगरों की देखरेख के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाते थे।
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नगरों में व्यापार, कर वसूली, सुरक्षा और सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता था।
5. न्याय व्यवस्था
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राजा सर्वोच्च न्यायाधीश था।
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अपराधियों को कठोर दंड दिए जाते थे ताकि समाज में अनुशासन बना रहे।
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दंड नीति के कारण अपराध बहुत कम होते थे।
मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था
मौर्य काल की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार, कर व्यवस्था और उद्योग पर आधारित थी।
1. कृषि
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कृषि मौर्य अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी।
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किसानों से भूमि कर (लगभग उपज का 1/4 हिस्सा) लिया जाता था।
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सिंचाई व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता था, नहरें और तालाब बनाए जाते थे।
2. कर प्रणाली
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भूमि कर, व्यापार कर, वन कर, पशु कर आदि वसूले जाते थे।
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इन करों से साम्राज्य की सेना, प्रशासन और जनकल्याणकारी कार्य चलते थे।
3. व्यापार और वाणिज्य
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मौर्य काल में आंतरिक और बाहरी दोनों व्यापार खूब फला-फूला।
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भारत से कपड़ा, मसाले, हाथीदांत, मोती, और रत्न विदेशों में निर्यात किए जाते थे।
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यूनान, मिस्र, श्रीलंका और मध्य एशिया के साथ व्यापारिक संबंध थे।
4. उद्योग और शिल्प
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धातु कला (लौह और तांबे के औजार, हथियार) का विशेष महत्व था।
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कपड़ा उद्योग, मिट्टी के बर्तन और आभूषण निर्माण भी खूब होता था।
5. विदेशी व्यापार
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समुद्री मार्गों से भी व्यापार होता था।
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ताम्रलिप्त बंदरगाह (आधुनिक पश्चिम बंगाल) एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।
👉 कुल मिलाकर मौर्य काल की अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर और समृद्ध थी।
मौर्य समाज
मौर्य काल का समाज जाति और वर्ग व्यवस्था पर आधारित था।
1. जाति व्यवस्था
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समाज में चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) प्रचलित थे।
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ब्राह्मणों का सम्मान था लेकिन बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव से धार्मिक सहिष्णुता भी देखने को मिली।
2. स्त्रियों की स्थिति
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स्त्रियों की स्थिति मिश्रित थी।
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उच्च वर्ग की महिलाएँ शिक्षा और धर्म में भाग ले सकती थीं।
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लेकिन समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था हावी थी।
3. जीवन शैली
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गाँव के लोग कृषि कार्य करते थे।
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नगरों में व्यापारी, शिल्पकार और अधिकारी रहते थे।
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सामाजिक जीवन धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ा हुआ था।
मौर्य काल में धर्म
मौर्य साम्राज्य के दौरान धर्म का बहुत प्रभाव रहा।
1. हिंदू धर्म
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वैदिक परंपराएँ जारी रहीं।
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यज्ञ और पूजा का महत्व था।
2. जैन धर्म
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चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंत में जैन धर्म अपना लिया।
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अहिंसा और तपस्या का प्रचार हुआ।
3. बौद्ध धर्म
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अशोक महान ने बौद्ध धर्म को अपनाया और उसका व्यापक प्रचार किया।
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बौद्ध धर्म का प्रसार भारत से बाहर श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड तक हुआ।
👉 मौर्य काल धार्मिक सहिष्णुता और बहुलता का उदाहरण था।
भारत का भौगोलिक विस्तार और उसकी स्तिथि
मौर्य साम्राज्य की कला और संस्कृति
मौर्य काल भारतीय कला और संस्कृति के विकास का स्वर्ण युग माना जाता है। इस समय में स्थापत्य, मूर्तिकला और शिक्षा का बहुत विकास हुआ।
1. स्थापत्य कला
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अशोक के शासनकाल में स्तूप और विहार का निर्माण हुआ।
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सांची का महान स्तूप इस युग की सबसे प्रसिद्ध इमारत है।
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मौर्य काल के महलों का वर्णन ग्रीक यात्री मेगस्थनीज ने किया है, जिन्हें लकड़ी और पत्थरों से सजाया गया था।
2. मूर्तिकला
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मौर्य काल की सबसे अद्भुत मूर्तिकला अशोक स्तंभ हैं।
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सारनाथ का सिंह स्तंभ आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
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इन स्तंभों पर सुंदर नक्काशी और लेख अंकित हैं।
3. गुफा कला
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मौर्य काल में चट्टानों को काटकर गुफाओं का निर्माण किया गया।
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बराबर की गुफाएँ (बिहार) इस काल की प्रसिद्ध गुफाएँ हैं, जिन्हें आजीवक संप्रदाय को समर्पित किया गया था।
4. साहित्य और शिक्षा
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इस समय कौटिल्य का अर्थशास्त्र और मेगस्थनीज की इंडिका जैसे ग्रंथ लिखे गए।
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तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे।
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बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक भी इसी काल में लिखे गए।
👉 कला और संस्कृति के क्षेत्र में मौर्य काल ने आने वाले युगों के लिए आधार तैयार किया।
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मौर्य साम्राज्य का पतन
इतना विशाल और शक्तिशाली साम्राज्य धीरे-धीरे क्यों ढह गया? इसके पीछे कई कारण थे।
1. अशोक के बाद कमजोर शासक
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अशोक के बाद उनके उत्तराधिकारी उतने सक्षम नहीं थे।
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साम्राज्य में विद्रोह और अव्यवस्था फैलने लगी।
2. प्रशासनिक कमजोरी
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इतने विशाल साम्राज्य का संचालन करना कठिन था।
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प्रांतीय शासक स्वतंत्र होने लगे।
3. आर्थिक संकट
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बड़े युद्ध और विशाल सेना को बनाए रखना बहुत महंगा साबित हुआ।
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कर प्रणाली पर दबाव बढ़ गया, जिससे प्रजा असंतुष्ट होने लगी।
4. विदेशी आक्रमण
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उत्तर-पश्चिम से ग्रीक और शक जातियों के आक्रमण होने लगे।
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साम्राज्य कमजोर पड़ता गया।
5. शुंग वंश का उदय
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अंततः 185 ई.पू. में मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य अपने सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा मारा गया।
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इसके साथ ही मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया और शुंग वंश की शुरुआत हुई।
मौर्य साम्राज्य की प्रमुख उपलब्धियाँ
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राजनीतिक एकता:
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भारत का पहला साम्राज्य जिसने उत्तरी भारत को एकीकृत किया।
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प्रशासनिक व्यवस्था:
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केंद्रीकृत और संगठित शासन की नींव रखी।
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आर्थिक समृद्धि:
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कृषि, व्यापार और उद्योग का अद्भुत विकास हुआ।
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धर्म और संस्कृति:
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अशोक ने बौद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार किया।
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धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा का प्रचार हुआ।
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कला और स्थापत्य:
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सांची स्तूप, अशोक स्तंभ और गुफा कला मौर्य काल की अमूल्य धरोहर हैं।
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मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का सबसे प्रभावशाली और गौरवशाली साम्राज्य था।
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चंद्रगुप्त मौर्य ने इसे स्थापित किया,
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बिंदुसार ने इसका विस्तार किया, और
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अशोक महान ने इसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ऊँचाई दी।
अशोक की अहिंसा और धर्म नीति आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा है। मौर्य साम्राज्य ने भारत को राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से एकजुट किया।
👉 इसीलिए मौर्य साम्राज्य को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय माना जाता है।
FAQs on Mauryan Empire:
Q1. मौर्य साम्राज्य की स्थापना किसने की थी?
👉 मौर्य साम्राज्य की स्थापना 321 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से की थी।
Q2. मौर्य साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी?
👉 मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) थी।
Q3. मौर्य साम्राज्य का सबसे महान शासक कौन था?
👉 अशोक महान मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध और महान शासक माने जाते हैं।
Q4. कलिंग युद्ध कब हुआ था और इसका परिणाम क्या रहा?
👉 कलिंग युद्ध 261 ई.पू. में हुआ। इसमें लाखों लोग मारे गए, जिसके बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा का मार्ग चुना।
Q5. मौर्य साम्राज्य का पतन कब और कैसे हुआ?
👉 185 ई.पू. में अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य को उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मार डाला और साम्राज्य का अंत हो गया।
Q6. मौर्य काल की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थीं?
👉 राजनीतिक एकता, केंद्रीकृत प्रशासन, आर्थिक समृद्धि, कला-संस्कृति का विकास और बौद्ध धर्म का प्रसार मौर्य काल की प्रमुख उपलब्धियाँ थीं।
Q7. अशोक की धम्म नीति क्या थी?
👉 अशोक की धम्म नीति अहिंसा, करुणा, धार्मिक सहिष्णुता और प्रजा कल्याण पर आधारित थी।
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